भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियोंकी अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान् श्रीगणेश सिद्धि, बुद्धिके एवं शुभ और लाभके स्वामी तथा सभी अमङ्गलों एवं विघ्नोंके नाशक हैं, ये सद-बुद्धि प्रदान करनेवाले हैं। अतः इनके समवेत-पूजनसे सर्वस्व कल्याण-मङ्गल एवं आनन्द प्राप्त होते हैं।
श्री गणेश-लक्ष्मी पूजन आवाहन | Laxmi-Ganesh Pujan Vidhi |
श्री गणेश-लक्ष्मी पूजन आवाहन मंत्र सहित | Laxmi-Ganesh Sampurn Pujan Vidhi
कार्तिक कृष्ण अमावास्याको भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान् गणेश की नूतन प्रतिमाओंका प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन करें। पूजनके लिये किसी चौकी अथवा कपड़ेके पवित्र आसनपर गणेशजीके दाहिने भागमें माता महालक्ष्मीको स्थापित करना चाहिये। पूजनके दिन घरको स्वच्छ कर पूजन-स्थानको भी पवित्र कर लेना चाहिये और स्वयं भी - पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायंकालमें इनका पूजन करना चाहिये ।
संपूर्ण पूजन-सामग्री जैसे :-
पुष्प पुष्पमाला,कमल पुष्प,रोली,कुंकुम,अक्षत(चावल), हल्दी, जल, दूध, दही, घी, शहद,चीनी, पंचामृत, गणेश जी के वस्त्र, माता लक्ष्मी के वस्त्र, जनेऊ, धूप, दीप, नैवेद्य,अबीर गुलाल, गणेश पूजन के लिए दूर्वा, फल,ताम्बूल ( पान, सुपारी, लौंग, इलायची ) कमल गट्टा,द्रव्य - दक्षिणा, कर्पूर, कलावा, रक्त चंदन,सिंदूर, अष्टगंध, इत्र, सरस्वती पूजन (पंजिका बही खाता) के लिए पांच हल्दी की गाठे, धनिया, कमलगट्टे।आदि पूजन-सामग्रीको यथास्थान रख ले।
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री- धारण, मार्जन प्राणायाम कर इन मंत्रो द्वारा तीन बार आचमन (जल को पिए) करें।
ॐ केशवाय नमः ।
ॐ नारायणाय नमः ।
ॐ माधवाय नमः।
इस मंत्र कों बोलते हुए अपने हाथों को धो ले।
ॐ हृषीकेशाय नमः।
अपने ऊपर तथा पूजा सामग्रीपर निम्न मन्त्र पढ़कर जल छिड़के-
कुशा की बनी पवित्री अथवा सोने की अंगूठी को धारण करें पवित्रीधारण :-
पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।
पूजा सामग्री के ऊपर इस मन्त्र के द्वारा जल छिड़के - पवित्रीकरण
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
पवित्रीकरण करने के बाद अपने दाहिने हाथ में जल लेकर
आसन शुद्धिकरण के लिए विनियोग करें।
ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरु पृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसन पवित्रकरणे विनियोगः । ( जल को भूमि पर छोड़ दे )
आसन शुद्धिकरण मंत्र:-
ॐ पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥ ( गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि । पृथ्वै नमः, शेष आसन्नै नमः, आधार शक्तै नमः। )
आसन शुद्धि करने के बाद चिद्र रूपिणी या गायत्री मंत्र से अपनी शिखा को बाँधे।
इस मंत्र के द्वारा तिलक लगाए-
केशवानन्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम पुण्यं यशस्य मायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् । ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।
धूप-दीप पूजनम् -
ॐ भो दीप देवरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविघ्नकृत् यावत्कर्मसमाप्तिः स्याद्तावत्त्वं सुस्थिरो भव ॥
ॐ दीप ज्योतिषे नमः सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि ।
जल गंध अक्षत व पुष्प चढ़ाकर शंख और घंटा का पूजन करें -
शंख पूजन-शंखपूजनम्
त्वं पुरासागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे । निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः शङ्खस्थदेवाय नमः ।
घंटा पूजन-घंटापूजनम्
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं च रक्षसाम् । कुरु घण्टे वरं नादं देवतास्थान सन्निधौ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः घण्टस्थिते गरुडाय नमः ।
संकल्प-नियम और विधान
हाथ में पान तिल-यव जल अक्षत पुष्प सुपारी व द्रव्य लेकर पूजन का संकल्प करे- या पंचदेव विष्णु कलश-गणेश-वरुण पूजन के बाद भी संकल्प का विधान हैं।
संकल्प - मंत्र
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे राज्यान्तर्गते अमुक अमुक नामके नगरे अमुक नामक ग्रामे वैक्रमाब्दे अमुक नाम अमुक राज्यान्तर्गते अमुक मण्डलान्तर्गते संवत्सरे मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ अमुक वासरे अमुक गोत्रोत्पन्नः अमुक नाम शर्मा (वर्मा, गुप्तः, दासः) अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाता ज्ञात कायिकवाचिक मानसिकसकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मी प्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये । तदङ्गत्वेन गणपति पूजनं च करिष्ये
स्वस्तिवाचन-पाठ करें तदुपरान्त:- पंच देवता पूजन :-
भगवान विष्णु पूजन :- कलश गणेश वरुण पूजन:-
नवग्रह पूजन:- रक्षा विधान :- करें।
हाथ में पुष्प अक्षत लेकर गणेश जी माता लक्ष्मी का ध्यान आवाहन करें।:-
गणपति ध्यान :-
ॐ गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम् । उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम् ।। ॐ गं गणपतये नमः ध्यानं समर्पयामि।
आवाहन:-
ॐ गणांना त्वा गणपति गुं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गुं हवामहे निधिनां त्वा निधिपति गुं हवामहे वसो मम आह्मजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ॐ गं गणपतये नमः इहागच्छ इह तिष्ठ।
माँ लक्ष्मी ध्यान :-
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया । या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः । ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि । (ध्यानके लिये पुष्प अर्पित करे ।)
माँ लक्ष्मी आवाहन :-
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम् सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम् ॥ ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ ॐ महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मी इहागच्छ इह तिष्ठ। आवाहनार्थे अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि। ( आवाहन के लिये अक्षत पुष्प चढ़ाये )
पुष्प अक्षत लेकर गणेश जी माता लक्ष्मी का मनोर्जुति• प्राण प्रतिष्ठा करें। :-
दिपावली गणपति ( गणपति जी) जी पूजन करें :-
पद्य, आर्घ्य, स्नान, आचमन मंत्र –
एतानि पाद्य अर्घ याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊँ गं गणपतये नम:।
पंचामृत स्नान
इदम् पंचामृत स्नानीयं समर्पयामि ऊँ गं गणपतये नम:।
शुद्ध जल से स्नान कराये
पंचामृतान्ते शुद्धोदकस्नानीये जलम ऊँ गं गणपतये नम:।
इस मंत्र से चंदन लगाएं:-
इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊँ गं गणपतये नम:।
इसके बाद- इदम् श्रीखंड चंदनम् बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।
सिन्दूर लगाए:-
इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ गं गणपतये नम:।
गणपति गजानन भगवान को दूर्वा और विल्बपत्र चढ़ाएं।
गणेश जी को लाल वस्त्र पहनाएं।
इदं रक्त वस्त्रं ॐ गं गणपतये नमः।
गणेश जी को प्रसाद चढ़ाएं:-
इदं नानाविधि नैवेद्यं समर्पयामि ऊँ गं गणपतये नमः।
मोदक अर्पित करने के लिए मंत्र: –
इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊँ गं गणपतये नम:।
अब आचमन कराएं।
इदं आचमनीयं ऊँ गं गणपतये नम:।
इसके बाद पान सुपारी लौंग इलायची दें।
इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊँ गं गणपतये नमः।
हाथ में फूल लेकर मंत्र पुष्पान्जलि दे।
अविरल मदधारा धौतकुम्भ:शरण्यः।
फणिवरवृतगात्र: सिद्ध साध्यादिवन्द्य:।
त्रिभुवन जनविघ्नध्वान्तविध्वंसदक्षो।
वितरतु गजवक्त्र: संततं मंगलं वः।
एष: पुष्पान्जलि ऊँ गं गणपतये नम:।
हाथ में पुष्प लेकर माता लक्ष्मी जी की पूजन प्रारम्भ करें | Laxmi Sampurn Pujan Vidhi
पद्य, आर्घ्य, स्नान, आचमन मंत्र –
एतानि पाद्य अर्घ याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊँ श्री महालक्ष्म्यै नम:।
स्नान कराएं:- ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभि:। श्री महालक्ष्म्यै नमः। वस्त्र अर्पित करें:-
इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल पहनाएं.
रक्त चंदन लगाएं:-
इदं रक्त चंदनम् लेपनम् श्री महालक्ष्म्यै नमः।
सिन्दूर लगाएं:-
इदं सिन्दूराभरणं ॐ लक्ष्म्यै नमः।
अक्षत अर्पित करें:-अक्षतं समर्पयामि श्री महालक्ष्म्यै नमः।
पुष्प अर्पित करे:-
ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै। ॐ महालक्ष्म्यै नमः। माला पहनाएं।
श्री महालक्ष्मी अंग पूजन मंत्र एवं विधि
बाएं हाथ में कुमकुमअक्षत और पुष्प लेकर दाएं हाथ से थोड़ा-थोड़ा अक्षत छोड़ते जाएं—
ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि
ॐ चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि
ॐ कमलायै नम: कटिं पूजयामि,
ॐ कात्यायिन्यै नम: नाभिं पूजयामि,
ॐ जगन्मात्रे नम: जठरं पूजयामि
ॐ विश्ववल्लभायै नम: वक्षःस्थल पूजयामि,
ॐ कमलवासिन्यै नम: हस्तौ पूजयामि,
पद्माननयै नमः मुखं पूजयामि
ॐ कमल पत्राक्ष्यै नम: नेत्रत्रयं पूजयामि।
ॐ श्रियै नम: शिरं: पूजयामि
महालक्ष्म्यै सर्वांग पुजयामि
श्री महालक्ष्मी अष्टसिद्धि पूजन मंत्र एवं विधि
पूर्वादि-क्रमसे आठों दिशाओंमें आठों सिद्धियोंकी पूजा कुङ्कुमाक्त अक्षतोंसे से करे-
1-ॐ अणिम्ने नमः (पूर्वे),
2-ॐ महिम्ने नमः (अग्निकोणे),
3 -ॐ गरिम्णे नमः (दक्षिणे),
4-ॐ लघिम्ने नमः (नैर्ऋत्ये),
5-ॐ प्राप्यै नमः (पश्चिमे),
6-ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्ये),
7-ॐ ईशितायै नमः (उत्तरे) तथा
8-ॐ वशितायै नमः (ऐशान्याम्) ।
तदुपरांत पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें।
श्री अष्टमहालक्ष्मी पूजन मंत्र एवं विधि
पूर्वादि-क्रमसे आठों दिशाओंमें अष्टाहमलक्ष्मी पूजन करे-
1-ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः,
2-ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः,
3-ॐसौभाग्यलक्ष्म्यै नमः,
4-ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः,
5-ॐ कामलक्ष्म्यै नमः,
6-ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः,
7-ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः
8-ॐ योगलक्ष्म्यै नमः ।
तदुपरांत पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें।
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि ! नमोऽस्तु ते ॥
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि । (प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे ।)
इसके बाद देहलीविनायक , श्री महाकाली (दवात) पूजन, लेखनी ( बही-खाता पूजन, माँ सरस्वती पूजन, कुबेर पूजन, तुला तथा मान पूजन एवं दीपमालिका (दीपक) पूजन का भी विधान हैं जो की विशेष कर व्यापरियों के लिये हैं। इसके बाद गणपति जी माता महालक्ष्मी और अन्य आवाहित सभी देवी और देवताओं को पुष्पांजलि अर्पित करें।
( ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)