हिन्दू परंपरागत संस्कृति रीति रिवाज के अनुसार वर-वरण (तिलक) फलदान आदि अनिवार्य रूप से प्रचलित रहा हैं। लौकिकता के अनुसार हम सभी उसका निर्वाह करते आ रहे हैं। मन की सन्तुष्टि से और विश्वास से बढ़कर सृष्टि में कुछ भी नहीं हैं। आस्था विश्वास श्रद्धा
वर-वरण (तिलक) संकल्प एवं पूजन विधि-Var-Varan (Tilak) Sankalp Mantra |
वर-वरण (तिलक)
विवाह से पूर्व 'तिलक' का संक्षिप्त विधान इस प्रकार है- वर पूर्वाभिमुख तथा तिलक करने वाले (पिता, भाई आदि) पश्चिमाभिमुख बैठकर निम्नकृत्य सम्पन्न करें- मङ्गलाचरण, षट्कर्म, तिलक, कलावा, पंच देव, विष्णु पूजन, कलशपूजन, गुरुवन्दना, गौरी-गणेश पूजन, सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन आदि करें।
इसके बाद कन्यादाता वर का यथोचित स्वागत-सत्कार (पैर धुलाना, आचमन कराना तथा हल्दी से तिलक करके अक्षत लगाना) स्थानीय परंपरा अनुसार करें।
संकल्प मंत्र
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये पर्राधे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतर्वषे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते, .......... क्षेत्रे, .......... विक्रमाब्दे .......... संवत्सरे .......... मासानां मासोत्तमेमासे .......... मासे .......... पक्षे .......... तिथौ .......... वासरे .......... गोत्रोत्पन्नः ............(कन्यादाता) नामाऽहं ...............(कन्या-नाम) नाम्न्या कन्यायाः (भगिन्याः) करिष्यमाण उद्वाहकमर्णि एभिवर्रणद्रव्यैः ...............(वर का गोत्र) गोत्रोत्पन्नं ...............(वर का नाम) नामानं वरं कन्यादानार्थं वरपूजनपूर्वकं त्वामहं वृणे, तन्निमित्तकं यथाशक्ति भाण्डानि, वस्त्राणि, फलमिष्टान्नानि द्रव्याणि च...............(वर का नाम) वराय समपर्ये।
तदुपरान्त 'वर' को प्रदान की जाने वाली समस्त सामग्री (थाल-थान, फल-फूल, द्रव्य-वस्त्रादि) कन्यादाता हाथ में लेकर संकल्प मन्त्र बोलते हुए वर को प्रदान कर दें-
तत्पश्चात् क्षमा प्रार्थना, नमस्कार, विसजर्न तथा शान्ति पाठ करते हुए कार्यक्रम समाप्त करें।