वरुण देव पूजन प्रत्येक पूजन में अनिवार्य हैं। जिस तरह कलश पूजन के बिना कोई भी देव पूजन या यज्ञ अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता हैं। जल के बिना कलश पूजन नहीं हो सकता हैं। और जल के अधिपति देवता वरुण देव हैं।
वरुण पूजन विधि मंत्र |
वरुण पूजन का महत्व क्यों हैं?
आइये जानते हैं की वरुण पूजन का महत्व और प्रधानता क्यों हैं। वेद पुराणों में भी वर्णन हैं वरुण देव की पूजन सभी प्रकार के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक विपत्ति का हरण करने वाला जग कल्याण के लिए की जाती है । भूलोक में जीवन प्रदायनि स्रोतों में जल दूसरा सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं जिनके स्वामी वरुण भगवान हैं।
प्रत्येक देव पूजन कर्म कर्मकांड में वरुण का आवाह्न कलश के ऊपर किया जाता हैं। शिव जी के वरदान के अनुसार कलश में ब्रह्मांड के सभी दिव्य शक्तियों और देवी-देवताओं का आवाह्न स्थापन किया जा सकता हैं।
वरुण देवता की स्तुति
हाथ में फूल और अक्षत लेकर वरुण देवता ध्यान करें:-
नमोस्तु लोकेश्वर पाश पाने यादौ, गणैर्वन्दित पाद् पद्मम।
पीठेऽत्रय देवेश गृहाण पूजां, पाहि त्वमस्यमान भगवन्नमस्ते।।
पाद्य-अर्घ-आचमणी: -गङ्गोदकं निर्मलं च सर्व सौगन्ध्य संयुतम् । पाद्य-अर्घ-आचमणीयम् दत्तं मे प्रतिगृह्यताम् ॥कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
पंचामृतः -ॐ पंचनध : सरस्वती मपियन्ति सस्त्रोतस : । सरस्वती तु पंचधासोदेशे भवत्सरित् ॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
शुद्ध-जलः -शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त आश्विनाः
श्येतः श्येताक्षोऽरुणास्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामा अवलिप्ता रौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः ।
शुद्धं यत्सलिलं दिव्यं गङ्गाजलसमं स्मृतम्
समर्पितं मया भक्त्या शुद्धस्नानाय गृह्यताम् ॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
वस्त्रम् : - सर्वभूषाधिके शुद्धे लोक लज्जा निवारणे । मयोपपादिते वस्त्रे गृहाण परमेश्वर:॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
मोलीबांधेः - ॐ सुजातो ज्योतिषा सहशर्म वरुथ मा सदत्स्व : । वासो अग्नेविश्वरूपर्ठ संव्ययस्व विभावसो ॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
गंधम्: -गंधद्दारां दुराधर्षां नित्यं पुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥
ॐ त्वा गंधर्वा अखनंस्त्वामिन्द्र-स्त्वाम् बृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमोराजा विद्वान यक्ष्मादमुच्यत ॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
अक्षतः -अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः। मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥ इदम अक्षतम् कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
पुष्पः - पत्रं पुष्पं फलं तौयं रत्नानि विविधानि च । गृहाणार्घ्यं मयादत्तं देहिमे वाछितं फलम् ॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
धूपं - वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढयो गन्ध उतम: । आघ्रेय : सर्वं देवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
आचमनीयम्: - शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम् । आचम्यतां सुरेश्रेष्ठ मयादत्तं च भक्तित : ॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः।
ताम्बूल-पूंगीफल -पूगीफलं महद् दिव्यं नागवल्लीदलं चैव समन्वितम् । पूंगीफलं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरम् ॥ कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः ॥
द्रव्य दक्षिणा : - हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो । अनन्तपुण्यफलदमत: शांतिं प्रयच्छ में ॥कलश वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः ॥
गंगा वरुण विशेष आवाहन: - गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धो कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥ ब्रह्माण्डोदर तीर्थानि करै : स्पृष्टानि ते रवे । तेन सत्येन मे देव तीर्थ देहि दिवाकर ॥
पूर्वे ऋग्वेदाय नमः , दक्षिणे यजुर्वेदाय नम :, पश्चिमे सामवेदाय नमः, उत्तरे अथर्वण वेदाय नमः ।
पुष्पाञ्जलि - नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय , सुश्वेत हाराय सुमंगलाय । सुपाशहस्ताय झषासनाय , जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ॥
पाश पाणि नमस्तुभ्यं पद्मिनी जीवनायकम् । यावत्पूजन समाप्तिस्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव : ॥
इसके बाद जल से सम्पूर्ण पूजा सामग्री को प्रोक्षण करें ।
ॐ आपोहिष्ठा मयोभुवस्तान ऊर्जेदधातन । महेरणाय चक्षसे । योव : शिव तमोरसस्तस्य भाजयतेहनः । उशतीरिवमातर : ॥
इसके बाद भूमि पर जल छोडें ।
तस्मा अरङ्गमामवो यस्य क्षमाय जिन्वथ । ( पुन : प्रोक्षण ) आपोजन यथाचनः ॥
हाथ में फूल और चन्दनयुक्त अक्षत लेकर वरुण कलश गणेश आवाहित सभी देवताओं को पुष्पांजलि दे:-
विश्वेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लंबोदराय सकलाय जगध्दिताय।
नागाननाय श्रुतियग्यविभुसिताय, गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
देव दानव संवादे मथ्य माने महोदधौ उत्पन्नोसि तदाकुंभ विधृतो विष्णुना स्वयं॥