सर्वतोभद्र मंडल बनाने(रचना) की विधि क्या हैं?
सर्वप्रथम सर्वतोभद्र मंडल निर्माण के लिए 2.5×2.5 फीट यानि की 30×30 इंच का चौकी पर रेखाकृति बनाए। मंडल पर दक्षिण से उत्तर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर बराबर-बराबर 1.35×1.35 इंच। 19×19 खड़ी (लंबरूप) एवं आड़ी (क्षैतिज) लाइनों से कुल मिलाकर 324 चैकोर रेखा बनाये। चारों तरफ तीन वाह्य परिधि बनाये।
सम्पूर्ण सर्वतोभद्र मंडल वेदी रचना और देवताओं का आवाहन स्थापन |
इनमें 12 खण्डेन्दु पुंज (सफेद), 20 कृष्ण पुंज शृंखला (काली), 88 वल्ली (हरे), 72 भद्र (लाल), 96 वापी (सफेद) पुंज, 20 परिधि (पीला) पुंज तथा 16 मध्य (लाल) पुंज के कोष्ठक मिलाकर 324 पुंज कोष्ठके होते हैं।
कोष्ठकों में इन्द्रादि देवताओं, मातृशक्तियों तथा अरुन्धति सहित सप्तऋषि आदि का स्थापन एवं पूजन किया जाता है। सर्वतोभद्र मंडल के बाहर तीन परिधियां होती हैं जिनमें सफेद सप्तोगुण का प्रतीक हैं, लाल रजो गुण का और काला तमो गुण का प्रतीक है । जो त्रिगुण भगवान की प्रसन्नता और मनोकामना सिद्धि के लिए किया जाता हैं।
सम्पूर्ण सर्वतोभद्र मंडल वेदी में कितने देवता हैं?
सर्वतोभद्र मंडल के 324 कोष्ठकों में निम्नलिखित 57 (कोटि) देवताओं की स्थापना की जाती है।
सर्वतोभद्रर मंडल वेदी : रचना |
क्रम | देवताओं का नाम | क्रम | देवताओं का नाम |
---|---|---|---|
01 | ब्रह्मा | 02 | सोम |
03 | ईशान | 04 | इन्द्र |
05 | अग्नि | 06 | यम |
07 | निर्ऋति | 08 | वरुण |
09 | वायु | 10 | अष्टवसु |
11 | एकादश रुद्र | 12 | द्वादश आदित्य |
13 | अश्विद्वय | 14 | सपैतृक-विश्वेदेव |
15 | सप्तयक्षादि | 16 | अष्टकुलनाग |
17 | गन्धर्वाप्सरस | 18 | स्कंद |
19 | नंदीश्वर | 20 | शूल |
21 | महाकाल | 22 | दक्षादि सप्तगण |
23 | दुर्गा | 24 | विष्णु |
25 | स्वधा | 26 | मृत्युरोग |
27 | गणपति | 28 | अप् |
29 | मरुदगण | 30 | पृथ्वी |
31 | सप्त गंगा | 32 | सप्तसागर |
33 | मेरु | 34 | गदा |
35 | त्रिशूल | 36 | वज्र |
37 | शक्ति | 38 | दंड |
39 | खड्ग | 40 | पाश |
41 | अंकुश | 42 | गौतम |
43 | भारद्वाज | 44 | विश्वामित्र |
45 | कश्यप | 46 | जमदग्नि |
47 | वशिष्ट | 48 | अत्रि-सप्तऋषि |
49 | अरुन्धती | 50 | ऐन्द्री |
51 | कौमारी | 52 | व्राह्मी |
53 | वाराही | 54 | चामुण्डा |
55 | वैष्णवी | 56 | माहेश्वरी |
57 | वैनायकी |
चावल का प्रयोग क्यों ?
हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) के मान्यताओ के अनुसार चावल (अक्षत) विषेश महत्व होता है। अक्षर- यानि जिसका एक भी दाना टूटा न हो ( विद्वानों को माने तो, पूजा में कोई सामग्री न हो तो चावल (अक्षत) उसकी कमी को पूर्ण कर देता है। हिन्दू पौराणिक शास्त्रो के अनुसार चावल शुभ और महत्व पूर्ण माना गया है. इससे देवी-देवता संतुष्ट और प्रसन्न होते है।
चावल (अक्षत) पूर्णता का प्रतिक होता है। चावल (अक्षत) से पूजन कर्म करने का भाव है, पूर्णत: सम्पूर्ण फल की प्राप्ति हो, कुछ भी खण्डित न हो।
खण्डेन्दु- तीन-तीन पुंज कोष्ठकों का खण्डेन्दु चारों कोनों पर बनाया जाता है।सर्वतोभद्र मंडल में खण्डेन्दु में 12 पुंज कोष्ठक होते हैं। ईशान कोण से प्रारंभ कर प्रत्येक कोण में तीन-तीन कोष्ठकों का एक-एक खण्डेन्दु बनाया जाता है।
जिसमें सफेद रंग की आकृति देने हेतु चावल का प्रयोग किया जाता है। अन्य रंगों के लिए रंगे हुए चावल का।
शृंखला- पांच-पांच कोष्ठकों की एक-एक कृष्ण श्रृंखला में कुल 20 पुंज कोष्ठक होते हैं।
वल्ली- खण्डेन्दु के बगल वाले कोष्ठक के नीचे दो कोष्ठकों में हरे रंग का प्रयोग किया जाता है। कृष्ण शृंखला के दायीं एवं बायीं (ग्यारह-ग्यारह) ओर चारों ओर कुल 88 पुंज वल्लियां तैयार की जाती हैं।
भद्र वल्ली से सटे चारों कोनों एवं आठों दिशाओं में नौ-नौ पुंज कोष्ठकों का एक-एक भद्र होता है जो लाल रंग के चावल से भरा जाता है। आठ भद्रों में कुल 72 पुंज कोष्ठक बनाये जाते हैं।
वापी- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाओं में 24-24 पुंज कोष्ठकों की एक-एक वापी तैयार कर उसमें सफेद रंग के चावल का प्रयोग किया जाता है। चार वापियों में 96 पुंज कोष्ठक होते हैं।
मध्य- सर्वतोभद्र मण्डल के शेष बचे 16 कोष्ठकों को मध्य कहा जाता है जिसका वास्तुशास्त्रीय महत्व है। मध्य में कर्णिकायुक्त अष्टदल कमल बनाया जाता है जिसमें लाल रंग के चावल का प्रयोग किया जाता है। इसी अष्टदल कमल में यज्ञ कर्म के प्रधान देवता की स्थापना कर उनकी विविध पूजा उपचारों से पूजा-अर्चना की जाती है।
परिधि- परिधि में 20 पुंज कोष्ठक होते हैं।
बाहरी परिधि- बाहरी परिधि में 3 परिधियां सतो, रजो और तमो गुण की होती हैं। सर्वतोभद्र मंडल के सम्पूर्ण देवता-सर्वतोभद्र मंडल के 324 पुंज कोष्ठकों में निम्नलिखित 57 देवताओं की आवाहन किया जाता है।
प्रधान देवता- ब्रह्मा सर्वतोभद्र मंडल के प्रधान देवता हैं। हाथ में फूल और अक्षत लेकर ब्रह्मा जी का ध्यान करें।
सर्वतोभाद्र मंडल ध्यान (ब्रह्मा ध्यान मंत्र)
त्वमीशिषेजगतस्तस्थुषश्च प्राणेन मुख्येन पतिः प्रजानाम्।
चित्तस्य चित्तेर्मनइन्द्रियाणां पतिर्महान् भूतगुणाशयेशः ॥1॥
त्वं सप्ततन्तून् वितनोषि तन्वात्रय्या चातुर्होत्रकविद्यया च ।
त्वमेक आत्माऽऽत्मवतामनादिः अनन्तपारः कविरन्तरात्मा॥2॥
त्वमेव कालोऽनिमिषो जनानां आयुर्लवाद्यावयवैःक्षिणोसि ।
कूटस्थ आत्मा परमेष्ठ्यजो महांस् त्वं जीवलोकस्य च जीवात्मा ॥3॥
व्यक्तं विभो स्थूलमिदं शरीरं येनेन्द्रियप्राणमनोगुणांस्त्वम् ।
भुक्षे स्थितो धामनि पारमेष्ठ्ये अव्यक्त आत्मा पुरुषः पुराणः ॥4॥
पूर्ण 57 (श्रेणी) सर्वतोभद्र मंडल देवताओं का आवाह्न
बाये हाथ में अक्षत और फूलों को लेकर दाहिने हाथ भाद्र मंडल पर देवताओं का आवाहन करें:-
1.मध्य श्वेत कर्णिका- ॐ ब्रह्मणे नमः ॐ ब्रह्मन् इहागच्छ इहतिष्ठ।
दिक्पाल स्थापना- श्वेत खण्ड परिधि के समीप में उत्तर से वायु कोण तक।
1. ॐ सोमाय नमः सोम इहागच्छ इहतिष्ठ।
2. ॐ ईशानाय नमः ईशान इहागच्छ इहतिष्ठ।
3. ॐ इंद्राय नमः इंद्र इहागच्छ इहतिष्ठ।
4. ॐ अग्नये नमः अग्निम् इहागच्छ इहतिष्ठ।
5. ॐ यमाय नमः यम इहागच्छ इहतिष्ठ।
6. ॐ नैर्ऋतये नमः नैर्ऋत्ये इहागच्छ इहतिष्ठ।
7. ॐ वरुणाय नमः वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ।
8. ॐ वायवे नमः वायो इहागच्छ इहतिष्ठ।
उत्तर और वायु के मध्य से अष्ट (आठ) रक्त पुंज पर क्रमशः
1. ॐ अष्टवसुभ्यो नमः अष्टवसवः इहागच्छत इहतिष्ठत।
2. ॐ एकादशरुद्रेभ्यो नमः एकादशरुद्रान् इहागच्छत इहतिष्ठत।
3. ॐ द्वादशादित्येभ्यो नमः द्वादिशादित्यान् इहागच्छत इहतिष्ठत।
4. ॐ अश्विनाभ्यां नमः अश्विनौ इहागच्छम् इहतिष्ठम्।
5. ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्यो पितृभ्यो नमः विश्वेदेवान् सपितरान् इहागच्छत इहतिष्ठ।
6. ॐ सप्तयक्षेभ्यो नमः सप्तयक्षान् इहागच्छत इहतिष्ठत।
7. ॐ भूतनागेभ्यो सर्पेभ्यो नमः भूतनागान् सर्पान् इहागच्छत इहतिष्ठत।
8. ॐ गंधर्वाप्सरोभ्यो नमः गंधर्वाप्सरसः इहागच्छत इहतिष्ठत।
चार (श्वेत 24 पदी पुंज) वापी पर
1. ब्रह्मा और सोम के मध्य- ॐ स्कंदाय नमः स्कन्द इहागच्छ इहतिष्ठ।2. स्कंदा और सोम के मध्य- ॐ नन्दीश्वराय नमः नंदीश्वर इहागच्छ इहतिष्ठ।
3. नन्दीश्वर और सोम के मध्य- ॐ शूलायरूद्ररूपाय नमः शूलायरूद्ररूपिणे इहागच्छतम इहतिष्ठतम।
4. पश्चिम-ॐ महाकाली महाकालभ्याम् नमः महाकालीमहाकालौ इहागच्छ इहतिष्ठ ।
2. ब्रह्मा इंद्र के मध्य वापी पर- ॐ दुर्गायै नमः दुर्गा इहागच्छ इहतिष्ठ ।
ब्रह्म पीत कर्णिकायों पर
ब्रह्मा जी के मस्तक के उपर पीत कर्णिका पर
1. ॐ मेरवे नमः मेरुम् इहागच्छ इहतिष्ठः।(मंडल के बाहरी श्वेतपरिधि पर उत्तर से वायव्य कोण तक)
1. उत्तर-ॐ गदायै नमः गदाम् इहागच्छ इहतिष्ठः।
2. ईशान के समीप - ॐ त्रिशूलाय नमः त्रिशूल इहागच्छ इहतिष्ठः॥
3.पूर्व- ॐ वज्राय नमः वज्रं इहागच्छेह तिष्ठ ।
4. अग्नि के समीप - ॐ शक्तये नमः शक्तिम् इहागच्छ इहतिष्ठः
5. दक्षिण - ॐ दण्डाय नमः दण्ड इहागच्छ इहतिष्ठ ।
6. नैर्ऋतय के समीप -ॐ खड्गाय नमः खड्गम् इहागच्छ इहतिष्ठः॥
7. पश्चिम - ॐ पाशाय नमः पाशम् इहागच्छ इहतिष्ठः॥
8. वायु के समीप-ॐ अंकुशाय नमः अंकुशम् इहागच्छ इहतिष्ठः॥
(मंडल के बाहरी रक्तपरिधि पर उत्तर से वायव्य कोण तक)
2. ईशान - ॐ भारद्वाजाय नमः भारद्वाजं इहागच्छ इहतिष्ठ।
3. पूर्वे - ॐ विश्वामित्राय नमः विश्वामित्रं इहागच्छेहतिष्ठ ।
4. आग्नि - ॐ कश्यपाय नमः कश्यपं इहागच्छेदृष्टि ।
5. दक्षिणे - ॐ जमदग्ने नमः जमदग्निं इहागच्छेह तिष्ठ ।
6. निर्ऋते - ॐ वसिष्ठाय नमः वसिष्ठं इहागच्छेह तिष्ठ।
7. पश्चिमे - ॐ अत्रये नमः अत्रिं इहागच्छेह तिष्ठ।
8. वायु - ॐ अरुन्धत्यै नमः अरुन्धति इहागच्छेहतिष्ठ ।
(मण्डल के बाहरी कृष्ण परिधि पर पूर्व से ईशान कोण तक)
1. पूर्व - ॐ ऐन्द्रे नमः ऐन्द्रीम् इहागच्छ इहतिष्ठः।
3. दक्षिण - ॐ ब्राह्म्यै नमः ब्राह्मीम् इहागच्छ इहतिष्ठः. ।
4. नैर्ऋत् - ॐ वाराही नमः वाराहीम् इहागच्छ इहतिष्ठः।
5. पश्चिम - ॐ चामुण्डायै नमः चामुण्डाम् इहागच्छ इहतिष्ठः।
6. वायु - ॐ वैष्णव्ये नमः वैष्णवीम् इहागच्छ इहतिष्ठः।
7. उत्तर - ॐ माहेश्वर्यै नमः माहेश्वरीम् इहागच्छ इहतिष्ठः।
8. ईशान - ॐ वैनायक्यै नमः वैनायकीम् इहागच्छ इहतिष्ठः