Sanskrit shloka arth sahit
न देवो विद्यते काष्ठे न पाषाणे न मृण्मये ।
भावे हि विद्यते सर्वत्र तस्माद्भावो हि कारणम् ॥
अर्थ - न ही लकड़ी या पत्थर की मूर्ति में , न हि मिट्टी में देवता का निवास होता है,अपितु देवता का निवास तो भावों यानि हृदय में होता है,अतः भाव हि सर्वोपरि कारण है, (हृदय में ही देवता का निवास है.)
देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चनः।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।
यह श्लोक क्या संदेश देता हैं? इस श्लोक में गुरु के महत्व को बताया गया है किंतु यह सभी सांसारिक गुरु पर लागू नहीं होगा क्योंकि इसमें जिस गुरु का वर्णन है वह कोई सामान्य नहीं है ।
अर्थ - देव (भगवान) के रुष्ट होने पर गुरु रक्षक है गुरु के रूठने पर कोई भी रक्षक नहीं है गुरु रक्षक है, गुरु रक्षक है, गुरु रक्षक है, इसमें कोई संदेह नहीं है।