Aapke Lagn-anusaar yese kre Surya ki aaradhana
ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से सूर्य हमें नेत्र सुख, अन्न एवं यश-प्रसिद्धि देते हैं। सूर्य को प्रथम एवं नवम भाव का कारक ग्रह कहा जाता है। सूर्य का आधिपत्य दशम भाव पर भी है। आइए जानते हैं कि लग्न के अनुसार सूर्य से क्या प्राप्ति होती है और किसी भी दोष निवारण के लिए हमें सूर्य देव की आराधना कैसे करनी चाहिए-
मेष लग्न-
मेष लग्न के लिए सूर्य पंचम स्थान का स्वामी होता है। इन जातकों के लिए सूर्य से नेत्रसुख, संतान सुख एवं पूर्ण शिक्षा और उच्च शिक्षा का आशीर्वाद मिलता है। सूर्य का अपनी मित्र राशि में होने से आकस्मिक धन लाभ और आध्यत्मिक शक्ति प्रदान करता है। सूर्य देव की कृपा प्राप्ति के लिए इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर सूर्य देव पर जल चढ़ाना चाहिए। लाल वस्त्र पर सूर्य देव की प्रतिमा लगाकर, तीन बार “आदित्यह्वदयस्त्रोतम” का जाप करें।
वृष लग्न-
वृष लग्न के लिए सूर्य का आधिपत्य चतुर्थ भाव पर होता है। इस लग्न के लिए सूर्य देव गृह सुख, माता सुख, भूमि, वाहन, भवन, संपत्ति, अन्त:करण की शुद्धता, उदर व्याधि जनता से सुख आदि देते हैं। किसी भी तरह के अशुभ फलों को दूर करने के लिए इस दिन पूजा का विशेष विधान है। इस दिन सूर्यदेव का व्रत रखें और प्रात:काल सूर्यदेव की पूजा करे जल चढ़ाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करते रहना श्रेष्ठकर होता है। “ॐ घृणि सूर्याय नम:”।
मिथुन लग्न-
मिथुन लग्न पर सूर्य का आधिपत्य कुंडली के तृतीय भाव पर होता है। इस भाव पर सूर्यदेव अपना पूर्ण नियंत्रण रखते हैं। भाई एवं बहनों का सुख, आत्म नियंत्रण, पराक्रमी लेखक, चुगल खोरी, खांसी, क्षय, दमा इत्यादि बातों का शुभ एवं अशुभफल प्राप्ति में सूर्यदेव का पूर्ण योगदान रहता है। इन जातकों को इस दिन सुबह सूर्य को अध्र्य दें और एक बार “आदित्यह्वदयस्त्रोतम” का जाप करें। “ॐ ह्रा ह्रौं सूर्यायनम:” की माला जाप लाभदायक।
कर्क लग्न-
कर्क लग्न के लिए सूर्य द्वितीय भाव पर पूर्व आधिपत्य रखते हैं। इस लग्न के लिए सूर्य देव, सम्पत्ति, धन, वित्त, गायन, मारक विचार राज्यसभा एवं धातु ज्ञान आदि शुभ-अशुभ फल देते हैं। जातकों को सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन का उपवास करना चाहिए। यदि नेत्र रोग हो और अन्य कोई रोग हो तो सूर्य को जल चढ़ाते समय जल में आंकड़ें के पुष्प डालें। “आदित्यह्वदयस्त्रोतम” का तीन बार पठन लाभदायक।
सिंह लग्न-
सूर्य देव सिंह लग्न के लिए विशेष महत्व के होते हैं क्योंकि लग्न के स्वामी होने के साथ प्रथम भाव के कारकेश भी होते हैं। सूर्य देव इस लग्न के जातकों को इष्टसिद्धि, आयु, स्वभाव, कद-काठी, सिर के रोग, मान प्रतिष्ठा, नेत्र -रोग, जीवन संघर्ष मुख का ऊपरी भाग, सद्गुण और शुभ-अशुभ फल देते हैं। ऎसे जातकों को जल में रोली और चावल डालकर सूर्य पर चढ़ाना चाहिए। साथ ही लाल वस्त्र पर सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित कर “ॐ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहि तन्नो: सूर्य: प्रचोदयात” का तीन मालाओं का जाप करना चाहिए।
कन्या लग्न-
कन्या लग्न के लिए सूर्य का आधिपत्य कुंडली के बारहवें भाव पर होता है। इस लग्न के जातकों को सूर्यदेव से अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए जातकों को सूर्य षष्ठी के दिन अवश्य पूजा अर्चना करनी चाहिए। इन जातकों को सूर्यदेव की पूजा अर्चना निम्न मंत्र की एक माला जप करनी चाहिए। “ॐ आकृष्णेनरजसा वर्तमानों निवेशयन्त्रमृतं मत्र्यंच हिरण्ययेन सविता रयेनादेवोयाति भुवनानि पश्यन”।
तुला लग्न-
तुला लग्न के लिए भी सूर्य का विशेष महत्व होता है क्योंकि कि तुला लग्न के लिए सूर्यदेव आय भाव पर अपना आधिपत्य रखते हैं। आय सम्पत्ति ऎश्वर्य, इच्छापूर्ति, रोगों से निदान, पुत्रवधु, दामाद, पिंडली के रोग, गु# धन, पैतृक सम्पत्ति आदि शुभ एवं अशुभ फल तुला लग्न के जातकों को सूर्यदेव से प्रसन्न होते हैं। तुला लग्न के जातकों को इस दिन व्रत रख बच्चों को अनाज से बनी मिठाई बांटनी चाहिए।
वृश्चिक लग्न-
सूर्यदेव वृश्चिक लग्न के दशम भाव पर अपना पूर्ण आधिपत्य रखते हैं। आदर, सम्मान, पिता की प्रतिष्ठा, उच्च पद, सरकारी सम्मान, धार्मिक उत्सव, माता पिता की अंत्येष्टि, मुंह एवं घुटने के रोग आदि शुभ एवं अशुभ फलों की प्राप्ति सूर्यदेव की कृपा से प्राप्त होती है। इस दिन सूर्योदय से पहले सूर्य पर जल चढ़ाते समय “ॐ घृणि: सूर्याय नम:” का जप करना चाहिए। “ आदित्यह्वदयस्त्रोतम ” का पठन भी लाभदायक होता है।
धनु लग्न-
धनु लग्न के लिए सूर्य भाग्यभाव का स्वामी होता है। नवम का कारकेश भी ज्योतिषशास्त्र में सूर्यदेव ही होते हैं। इस लग्न के लिए सूर्य देव भाग्य, धर्म, पुत्र की उच्च शिक्षा, विलम्ब, तपस्या, पूर्ण संचित द्रव्य, पाप-पुण्य, बुद्धिमत्ता, स्वप्न, आत्माओं से संपर्क आदि अच्छे एवं बुरे फल देते हैं। इस दिन सूर्यदेव की पूजा अर्चना धनुलग्न के जातकों को अवश्य करनी चाहिए। पूजा के घी का अखंड दीप भी सूर्यदेव के लिए जलाना भाग्य वृद्धि में विशेष सहायक होता है। इस दिन किसी पुजारी को लाल वस्त्र दान करना गरीबों को गेहूँ दान करना अतिश्रेष्ठ होता है।
मकर लग्न-
मकर लग्न के लिए सूर्य का आधिपत्य कुंडली के अष्टम भाव पर होता है। इस लग्न के लिए सूर्य देव से आयु, मृत्यु का कारण, व्याधि, संकट गु# रोग इत्यादि शुभ एवं अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इन अशुभफलों को कम करने के लिए सुबह सूर्यदेव को जल चढ़ाएं और “आदित्यह्वदयस्त्रोतम” का जप करें। “ॐ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहि तन्नो: सूर्य: प्रचोदयात” इस मंत्र की एक माला जरूर जपें।
कुंभ लग्न-
कुंभ लग्न में सूर्य का आधिपत्य कुंडली के सम भाव पर होता है। इस लग्न के लिए सूर्य देव से स्त्री, कामवासना, वस्तु, का खोना, व्यापार, विवाह, सांसारिक संबंध, विदेश से मान-सम्मान, जीवन में संकट, मारक भाव, जननेन्दियों के रोग, बवासीर रोग आदि शुभ एवं अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन पुरूष जातक को अपनी पत्नी एवं स्त्री जातक को अपने पति की मंगल कामना के लिए सूर्यदेव का व्रत रखकर सूर्यदेव की आराधना करनी चाहिए।
मीन लग्न-
मीन लग्न में सूर्य का आधिपत्य कुंडली के छठे भाव पर होता है। इस लग्न के लिए सूर्यदेव से ऋण, रोग, वैरी, पीड़ा, संदेह, चिंता, शंका आदि शुभ एवं अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। सूर्य देव इस लग्न के शुभ फल ही देते हैं। इस दिन सूर्य पर जल चढ़ाते समय 31 लाल मिर्च के बीजों के साथ जल चढ़ाने से शुभफल प्राप्त होते हैं। इस दिन “ॐ हा्रं ह्रीं ह्रौं सूर्याय नम:” की एक माला जप करने से अशुभ फलों में कमी एवं शुभफलों की प्राप्ति होती है।